Wednesday, August 7, 2013

स्वंय मर्दन

तू बन सँवर
बना वो भँवर,
पोंछ डाले हर उफ़ान
तू है वहीं  लहर।

तू अनेक नहीं एक है
उसमे भी विशेष है,
इस इकाई से ही तू श्वेत  है
ना भटके वो रेत है।

करते है तो करने दे वार
पुतलियाँ नहीं बाँधती संकल्पों का सार,
वो क्या मापे तेरा हृदय गार
सब छल लेंगे पर तेरा भार।

क्यूँ टटोले अंधे बर्तन
इस शोर का ना ले कंपन,
तुझमे ही तेरा दर्पण
यह जीवन तो है स्वंय मर्दन।

- ख़ुफ़िया कातिल

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